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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

4. गिद्ध 


एक समय की बात है जब पूरा विश्व "कोरोना" नामक महामारी की चपेट में आया हुआ था । उसके खौफ के सामने यमराज जी का खौफ धूमिल पड़ गया था । लोग त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे थे । घोर नास्तिक लोग भी पूजा पाठ करके अपने पापों के लिए भगवान के सामने क्षमा याचना कर रहे थे । स्थिति की भयावहता को देखकर भारत सरकार ने भी पूरे देश में कठोर "लॉकडाउन" घोषित कर दिया था और इसकी पालना करवाने के लिये सड़कों पर बड़ी बड़ी मूंछों वाले थानेदार, सिपाही उतार दिये थे जिससे लोग कोरोना से चाहे डरें या नहीं मगर पुलिस की मूंछों से ही डरकर घरों में दुबके पड़े रहें ।


सरकारी कार्यालय क्या सब बंद था इसलिए घर में पड़े रहते थे । करने को बस दो ही काम रह गये थे । सुबह जागो फिर नाश्ता ले लो । फिर थोड़ा आराम और फिर लंच । लंच के बाद नींद की एक झपकी तो जरूरी है तो उसे कैसे टाल सकते थे । इतने में शाम हो जाती तो डिनर का समय हो जाता था । जमकर डिनर करते थे और फिर सो जाते थे । दिन इसी तरह गुजर रहे थे ।


एक दिन लंच लेकर थोड़ा आराम करने के लिए मैं अभी बिस्तर पर लेटा ही था कि श्रीमती जी ने कहा


"दो महीने से खा ही खा रहे हो । देखते नहीं कैसे मुटिया रहे हो । घर में पड़े पड़े अब तक चार सोफा और दो पलंग तोड़ चुके हो और बर्तनों की तो कुछ पूछो ही मत , न जाने कितने फोड़ चुके हो"। 


मैंने कहा  "अकारण ही क्यों पुकार रही हो , ये किसकी खीज है जो हम पर उतार रही हो" । ये तो बढिया काफिया बन गया था । मन ही मन हम बड़े खुश हुए । मगर वह भी कम नहीं थी , आखिर श्रीमती तो मेरी ही थी । मेरे काफिया के जवाब में वह अपनी ही लय में वह बोली
"जाओ , थोड़ा स्वास्थ्य में सुधार कर लाओ । ऊपर छत पर कपड़े सूख रहे हैं , उन्हें उतार लाओ"।


सुप्रीम कोर्ट (श्रीमती जी) के आदेश के बाद अपील करने का कोई भी प्लेटफॉर्म अभी तक इस देश में नहीं बना है । इसलिए भलाई इसी में है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना की जाये नहीं तो मानहानि करने के चक्करमें पता नहीं क्या सजा भुगतनी पड़े ? इसलिए मैं मन‌ मारकर कपड़े लेने छत पर चला गया ।


मई का महीना था । भरी दोपहरी । राजस्थान में तो गर्मी वैसे ही "नंगा नाच" करती है । 

45 डिग्री तापमान में शरीर जल गया । इतने से पैदल चलने में ही पैरों में छाले पड़ गये । कड़ी धूप में बदन जल गया । सूरज देवता गुस्से से लाल होकर उबल रहे थे । पता नहीं वे कोरोना पर कुपित थे या सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन से । या हो सकता है कि वे भी अपनी श्रीमती जी से नाराज हों । पर जो भी कारण हो ,वे आग बरसा रहे थे ।

मुझे तो कपड़े उतारने थे तो जल्दी जल्दी कपड़े उतारने लगा । कपड़े उतारते उतारते मेरी निगाह सामने सड़क पर गई तो आश्चर्य से मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं । सामने सड़क पर इस भीषण गर्मी में भरी दोपहरी में भीड़ का एक रेला पैदल ही जा रहा था । मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । आसमान से आग बरस रही थी । सड़क का तारकोल पिघल कर लावा बन गया था ऐसे में गरीब से दिखने वाले लोग नंगे पैर न जाने कहां जा रहे थे ? ऐसी हालत में तो सड़कों पर उतरने की हिम्मत वही कर सकता है जिसे जान जाने की परवाह नहीं हो । मुझे उनमें भारत के वीर जवान नजर आये जो कैसी भी विपरीत परिस्थितियों में अपने पथ पर अडिग चलते यहते हैं । इतनी भीड़ थी कि मुझे तो वह सचमुच मानव सैलाब नजर आ रहा था ।


मैंने आवाज़ लगाकर एक दो लोगों को पास बुलाया और पूछा कि वे कौन हैं और इतनी बड़ी संख्या में कहां जा रहे हैं ?  तो उसने बताया कि वो मजदूर हैं और अपने अपने गांव जा रहे हैं । इस कड़ी चिलचिलाती धूप में फटेहाल , पसीने से तर-बतर , सामान सिर पर लादे , गोद में बच्चा संभाले हुए लोगों को देखकर मेरा मन द्रवित हो उठा । मैंने उन्हें हाथ से इशारा कर रुकने को कहा और उनके लिए थोड़े नमकीन,  बिस्कुट, चने , गुड़ और पानी की कुछ बोतलें लेकर मैं अपने घर के बाहर आया और एक पेड़ के नीचे कुछ लोगों को बुलवा कर उन्हें देने लगा । 


पूछने पर कुछ लोगों ने बताया कि वो "कामगार" हैं । मैंने कामगार शब्द पहली बार सुना था इसलिए समझा नहीं । मैं कामगार को मजदूर समझ बैठा और कहा कि मजदूर हैं ? वे बोले कि नहीं वे तो कामगार हैं । मैं मजदूर और कामगार का अंतर समझ नहीं पाया तो एक ने कहा कि हम लोग सब अपना अपना छोटा मोटा धंधा करते हैं । कोई चाय की टापरी चलाता है तो कोई पोहे की ठेल लगाता है । कोई भेलपूरी तो कोई पावभाजी की स्टॉल लगाता है । इसी तरह कोई घर घर जाकर झाड़ू बेचता है तो कोई कुछ और । सब अपना अपना काम करते हैं, मजदूरी नहीं करते  । 


मुझे यह जानकर बड़ अच्छा लगा कि ये लोग मजदूर नहीं बल्कि मालिक हैं , चाहे छोटे ही क्यों न हों । फिर मीडिया वाले इनको मजदूर क्यों कह रहे हैं मैंने जिज्ञासा वश पूछा । वो बोला । साहब , ये तो मीडिया वाले ही बता सकते हैं । शायद हमको मजदूर बताकर अपनी खबर चलाने से उनको ज्यादा पैसा मिलता हो ? 


मुझे उस छोटे ( लोग हैसियत के आधार पर छोटे बड़े आदमी में बांट देते हैं न) से आदमी की बड़ी सी समझ पर आश्चर्य हुआ । मैंने मन ही मन कहा कि ये लोग भी मीडिया की सच्चाई जानते हैं कि किस खबर का कितना मोल‌ है ?  ये लोग भी इनको अच्छी तरह से पहचानते हैं उनके मुंह से ऐसी बातें सुनकरबड़ा अच्छा लगा । 


बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि उनमें से कोई आठ सौ किमी दूर से पैदल आ रहा है तो कोई पंद्रह सौ किमी से । लगातार चलते रहने के कारण उनके पैरों की खाल उधड़ चुकी थी । पैर मांस के लोथड़े नजर आ रहे थे । कपड़े तार तार हो चुके थे । भूखे प्यासे बेहाल हो रहे थे । उनकी ऐसी हालत देखकर मन बहुत विचलित हुआ मगर मैं कर भी क्या सकता था ?


मैंने पूछा कि जब तुम्हारा परिवार साथ में ही है । बीवी बच्चे भी साथ हैं तो फिर अपने गांव क्यों जा रहे हो ? 


एक सज्जन बोले " साहब , सब लोगों का परिवार साथ नहीं हैं । जिनके परिवार अगर साथ हैं भी तो भी उनके कुछ बच्चे तो गांव में ही रहते हैं । और इनके माता पिता भी तो गांव में ही में रह रहे हैं अभी तक । अब जो ये कोरोना महामारी आई है तो हमको लगता है कि इस संकट की घड़ी में सब लोग एक साथ रहें । साथ में ही जियें और साथ ही मरें "। 


मैंने कहा कि क्या उनकी सरकार ने उनके खाने पीने का कोई बंदोबस्त नहीं किया था ? 


वे बोले "साहब , खाने पीने की तो कोई समस्या ही नहीं थी । भगवान की कृपा है और सरकार ने भी अच्छा इंतजाम कर रखा था लेकिन घर की याद हमको खींच लाई" । 


मैंने ठंडा पानी और कुछ खाद्य सामग्री उनको और दे दी । वे अभी खा पी रहे थे कि मैंने देखा कि अचानक आसमान पर कुछ गिद्धों का झुंड मंडराने लगा था । बड़े बड़े डैने फैलाये हुए फड़ फड़ कर रहे थे और जोर जोर से चीख रहे थे ।  उनकी चीख पुकार से सारे लोग भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे । मैं सोचता ही रह गया कि अचानक इतने सारे गिद्ध कहां से आ गये ? फिर मुझे रामायण कालीन गिद्ध जटायु और सम्पाती का स्मरण हो आया । कितना दूर का देख लेते हैं ये गिद्ध । गिद्धों की क्या चाहिए? मांस ही ना ? नोंचने को अगर मांस मिल जाये तो सैकड़ों किमी दूर से ही दिख जाता है इनको वह मांस । फिर यहां तो इंसानों का मांस मिलेगा नोचने के लिए । ऐसा सौभाग्य तो कभी कभी ही मिलता है । सो भरपूर फायदा उठाना चाहिए । शायद यही सोचकर इतने सारे गिद्ध झपट पड़े थे ।


फिर मैंने गिद्धों को गौर से देखा । कुछ गिद्ध सफेद टोपी लगाए हुए थे तो कुछ गिद्धों के गले में कलम लटक रही थी । कुछ गिद्धों ने अपनी आंखों पर कैमरा फिट करवा रखा था तो कुछ गिद्ध भांड की तरह हरकत कर रहे थे । एकाध गिद्ध शक्ल सूरत से इंटेलेक्चुअल से भी लग रहे थे । सफेद टोपी वाले गिद्ध कुछ खानदानी और कुछ नौसिखिए से लग रहे थे । 


मैं कुछ माजरा समझ पाता इससे पहले ही वे गिद्ध इन कामगारों पर टूट पड़े । जिनकी आंखों पर कैमरा फिट था , ऐसे गिद्ध भांति-भांति के फोटो खींचने में व्यस्त हो गए । अलग अलग ऐंगल से अलग अलग फोटो लिए उन्होंने । एक दो गिद्धों ने तो अपनी स्टोरी और भी शानदार बनाने के लिए ऐसा भी किया कि एक औरत से उसका बच्चा गोदी से उतरवा कर एक परात में रखवाया और उस परात को उस औरत के सिर पर रखवा कर फोटो लेने लगा । उस औरत को समझ ही नहीं आया था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है ? उसकी देखादेखी बाकी गिद्धों में भी अब तो फोटो शॉप की होड़ लग गई ।

एक गिद्ध महाशय तो इतने महान निकले कि उन्होंने एक सोते हुए बच्चे को आधा सूटकेस पर लिटा दिया और आधा जमीन पर खड़ा करा दिया । बच्चे की आंखें बंद थी ही । फिर उस गिद्ध ने उस बच्चे की मां से कहा "अब वह इस सूटकेस को खींचकर थोड़ी दूर ले जाये जब तक वीडियो नहीं बन जाये" । उसने ऐसा ही किया। 


एक गिद्ध ने ऐसा किया कि एक मां के सिर पर तो सारा सामान लदवा दिया और एक बच्चा उसकी गोदी में बैठा दिया । फिर उससे पूछा कि उसके और बच्चे हैं क्या ? उस औरत ने कहा कि नहीं तो गिद्ध महाशय ने पड़ौसी के दो बच्चे उठाये और एक एक बच्चा उसकी दोनों बांहों में थमा दिया ।  फिर गिद्ध ने वह फोटो लिया । वह फोटो बड़ा शानदार लग रहा था । 


एक गिद्ध ने एक बच्ची से कहा कि मैं सड़क पर गेंहू बिखेरूंगा तुम उसे एक एक कर बीनना । बड़ी अच्छी फोटो आयेगी । फोटो के लालच में बच्ची ने ऐसा ही किया । उन गिद्ध महाशय ने उसका फोटो और वीडियो दोनों ही बनाये । 


कलम वाले गिद्ध एक एक कामगार  से कुछ कुछ पूछ रहे थे। कामगार लोग तो कुछ और बताते परंतु गिद्ध कुछ और ही लिख रहे थे । इस पर अगर कामगार लोग कुछ बोलते तो वे उनको डांटकर चुप करवा देते कि उनको कुछ समझ ही नहीं है । वे कुछ नहीं जानते हैं । जानने का सारा ठेका इन कलम वाले गिद्धों ने ही ले रखा है । इसलिए वे जो कर रहे हैं , एकदम सही कर रहे हैं ।


एक दो इंटेलेक्चुअल टाइप के गिद्ध अंग्रेजी में कुछ गटर पटर कर रहे थे जो किसी के भी समझ में नहीं आ रहा था । पूछने पर एक गिद्ध ने बताया कि अंग्रेज जब गये थे तो इन नमूनों को छोड़कर गये थे जिससे लोगों को अहसास हो कि अंग्रेज ऐसे होते थे ।


सफेद टोपी वाले गिद्धों ने " मजदूर - मजदूर " चिल्लाना शुरू कर दिया था । अब तक तो वे सब गिद्ध जोर जोर से हंस रहे थे मगर अचानक वे जोर जोर से रोने लगे । उनके सेवकों ने उनकी आंखों में ग्लिसरीन की कुछ बूंदें डाल दीं जिसके कारण उनकी आंखों से जार जार आंसू गिरने लगे । सड़क पर आंसुओं का सैलाब आ गया था । अब कैमरा और कलम वाले सारे गिद्ध कामगारों को छोड़कर सफेद टोपी वाले गिद्धों को घेरकर खड़े हो गए । उनका फोटो शूट होने लगा । कलम भी चलने लगी । सफेद टोपी वालों का साक्षात्कार होने लगा । फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता की तरह सफेद टोपी वाले गिद्ध कपड़े बदल बदल कर फोटो खिंचवाने लगे ।सब मिलकर सरकार को कोसने लगे ।


मैंने बीच में टोकते हुए इतना ही कहा कि "ये लोग मजदूर नहीं , बल्कि कामगार हैं । आप लोग इन्हें मजदूर कहकर अपमानित क्यों कर रहे हो ? अगर आप इनके लिए इतने ही दुखी हैं तो इनकी कोई माकूल व्यवस्था आप ही करवा दो" ।

मेरे इतना कहते ही सारे गिद्ध मेरे ऊपर टूट पड़े । मुझे जगह जगह से नोंचने लगे , काटने लगे । उनमें से कोई मुझे हिटलर कह रहा था तो कोई सांप्रदायिक तो कोई "भक्त" । कुछ गिद्धों ने तो मुझे असहिष्णु ही घोषित कर दिया था । 


उनके आक्रमण से मैं बुरी तरह घबरा गया और

बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाकर मैं अपने घर में घुसा । अच्छी तरह से मैंने अपने घर का दरवाजा बंद कर दिया कहीं ऐसा ना हो कि दरवाजा जरा सा भी खुला रह जाए और ये गिद्धमेरे घर में घुस जाएं । उन गिद्धों ने दरवाजा तोड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाये । भगवान की कृपा से मैं सकुशल बच गया। उन "कामगारों" का क्या हाल हुआ होगा , भगवान ही जाने । 

आज पता चला कि ये गिद्ध कितने खतरनाक होते हैं । इनकी मर्जी के खिलाफ अगर कोई कुछ करना भी चाहे तो ये सब एक साथ उस पर टूट पड़ते हैं और उसे नोंच नोंच कर अधमरा कर देते हैं । बाकी काम भेड़िए कर देते हैं । अब पता चला कि लोग इन "गिद्धों" से क्यों डरते हैं ।




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6 Comments

Gunjan Kamal

21-Sep-2022 05:55 PM

शानदार

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दशला माथुर

20-Sep-2022 12:58 PM

Lajawab 👌

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shweta soni

09-Jul-2022 03:40 PM

Bahot hi achha 👌👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

09-Jul-2022 03:52 PM

💐💐🙏🙏

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